मंगलवार, 26 अक्तूबर 2010

नजाकत आ ही जाती है!

प्रिय मित्रों,
अपनी इस हास्य कविता की पहली पंक्ति मेरी नहीं है सो बहुत ही आदर के साथ मैं आप सभी से आज्ञा ले कर इसे प्रकाशित करना चाहूँगा! तो पेश-ए-खिदमत है, मेरी एक नयी हास्य कविता, आशा करता हूँ आप सभी को पसंद आएगी!

खुदा जब हुस्न देता है नजाकत आ ही जाती है,

खुशनसीब हैं वो कुड़ियां नियामत पा ही जाती हैं,

बदनसीब हैं वो लड़के जो राह चलते छेड़ें उन्हें,

गाहे बगाहे किसी न किसी की शामत आ ही जाती है,

बच जाते हैं जो खाली चप्पलें खा कर,

तन्हाई में चैन की सांसें लेते होंगे,

गलती से भी जो हत्थे चढ़ जाएँ इनके,

पीछा करते हुए ज़लालत आ ही जाती है,

ऊपर से गर तीन चार तगड़े भाई हो उनके,

फिर तो भैया क्या कहने धुनाई के,

अम्बुलेंस की ज़रूरत भी नहीं पड़ती है,

जनता अस्पताल पहुंचा ही जाती है,

या तो हुस्न-ओ-अदा हमें भी दे ए खुदा,

या छीन ले इन लड़कियों से भी,

चाकू उठाने की हिम्मत भले न हो,

क़त्ल करने की ताक़त आ ही जाती है!

शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

सपने....

सपने....
होश संभाले तो मां बाप ने सजाये,
बचपन से ही घोट घोट के पिलाये,
स्कूल में सब से अव्वल ही रहना,
ध्यान से पढना किसी से न कहना,
कितनी उम्मीदे है तुम से लगायी,
घनटो जाग के राते बितायी,
उन सब का दिल से तुम रखना खयाल,
करने तुम ही को हैं पूरे ओ लाल,
सपने....
अब अच्छी जिंदगी बिताने के लिये,
मोटी पगार की नौकरी पाने के लिये,
जैसे अमावास में चमकती सी रात हो,
ल्ग्जरी कार मिल जाये तो क्या बात हो,
इसी जदो-जहेद में हुये अपनो से दूर,
भीड में भी तन्हाईया भरपूर,
ऐश ओ आराम बस नाम के हैं,
अब लगता हैं किस काम के हैं,
सपने....
परिवार के भी फिर सजने लगे,
ख्वाहीशो के अंबार लगने लगे,
सब की मांगे भुनाने में,
उम्र गुजर गयी निभाने में,
अब समझा ये नाता तोडते नही,
आखिरी सांस तक पीछा छोडते नही,
कभी ख़ुशी कभी गम कह जाते हैं,
कभी पूरे अधूरे रह जाते हैं,
चलो चैन की नींद अब सो जायें,
काश सब के पूरे हो जायें,
सपने....

शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

"इक अजनबी से दो बातें"

"इक अजनबी से दो बातें"

उस गुल-अन्दाम(१) अजनबी से इक बात,
एक खूबसूरत सा एहसास बन गयी,
तन्हाई के ज़ख्मो की मुदावा(२) माफिक,
मामूली सी जो लगती थी ख़ास बन गयी,
अधूरी सी थी जो दिल में इक ख्वाहिश,
परदाख्त(३) हुई और वो मेरे पास बन गयी,
हर पल मेरे लिए तेरी ये तवज्जो(४)
टूटती साँसों को जोडती सांस बन गयी,
इंतज़ार है कब मुलाक़ात होगी उस से,
ये दस्त-निगारी(५) मेरे जीने की आस बन गयी,
तुझे देखने की कशिश उस गनजीना(६) सी है,
जो मेरे सफ़र की सब से बड़ी तलाश बन गयी!
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(१) खूबसूरत (२) औषधि (३) पूर्ण (४) एहमियत (५) चाहत (६) खजाना

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