सोमवार, 7 मई 2012

जय हो निर्मल बाबा!


दोस्तों
सब को मेरा प्यार भरा प्रणाम!
जैसा की आप सब जानते हैं की मेरे घर में नन्ही परी ने जन्म लिया है तो आजकल इतना व्यस्त रहता हूँ की ब्लॉग पर आने का वक़्त ही नहीं मिलता, काफी दिनों से आप सभी को नहीं पढ़ पाया इसके लिए क्षमा याचक हूँ!  आज ज़रा वक़्त मिला तो सोचा की कुछ लिखा जाए और निर्मल बाबा से बढ़िया क्या मिल सकता था तो एक व्यंग लिख डाला!
कृप्या ध्यान दें: ये एक कल्पना मात्र है, किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का मेरा इरादा नहीं है!

आशा करता हूँ आप सब को पसंद आयेगी ये रचना!

सुरेन्द्र "मुल्हिद"

जय हो निर्मल बाबा!

आजकल कोई कहता नहीं, जाना है काशी काबा
पूरी दुनिया पे छाये हैं अपने निर्मल बाबा 
किसी को कहते बिस्किट खाओ किसी को कहते खीर
भर भर के किरपा आयेगी, बन जाओगे पीर
किसी ने घर का खाना छोड़, पकड़ लिया है ढाबा
पूरी दुनिया पे छाये हैं अपने निर्मल बाबा   
हरे गुलाबी छोड़ के बस तुम बटुआ रखना काला
अब तक घर में क्यों नहीं तूने काला कुत्ता पाला
पैसे गर पाने हों बच्चा, शिफ्ट तू हो जा नाभा
पूरी दुनिया पे छाये हैं अपने निर्मल बाबा 
कोई कहता जुड़े हुए बस हुए हैं ६ ही महीने 
दरबार के चक्कर लगा लगा छूट गए पसीने
गर्लफ्रेंड नहीं बनी तो बेटा चला जा बीच कोलाबा
पूरी दुनिया पे छाये हैं अपने निर्मल बाबा 
अपने घर सुख मिले नहीं तो दूजे के घर झाँक
फिर भी अगर दिखाई ना दे, खोल ले तीसरी आँख
सब सोना दरबार को दे के, घर में रख ले ताम्बा 
पूरी दुनिया पे छाये हैं अपने निर्मल बाबा 
पूरा होते काम तुझे देना होगा दस्वंद 
वरना मेरे पहलवान तेरी साँसें करेंगे बंद
बेवक़ूफ़ जनता को बनाना, यही है मेरा हिसाबा
पूरी दुनिया पे छाये हैं अपने निर्मल बाबा 
जय हो निर्मल बाबा की, जय हो निर्मल बाबा!